गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर ज्ञानी उद्धव को परास्त कर दिया, उनके वाक्चातुर्य की विशेषताएँ लिखिए?


उद्धव जैसे ज्ञानी व्यक्ति को गोपियाँ की वाक्पटुता चुप रहने के लिए विवश कर देती है और वे गोपियों के वाक्चातुर्य से प्रभावित हुए बिना नहीं रहते। उनके वाक्चातुर्य की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-


स्पष्टता- गोपियाँ अपनी बात को बिना किसी लाग-लपेट के स्पष्ट कह देती हैं। उद्धव के द्वारा बताए गए योग-संदेश को बिना संकोच के कड़वी ककड़ी बता देती हैं। गोपियाँ कहती है कि जब भी वो किसी और की बात सुनती है तो वह बात उन्हें कड़वी ककड़ी की तरह लगती है। नीचे लिखी पंक्तियों में आप खुद ही देख सकते हैं।


"जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जक री।


सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी।"


व्यंग्यात्मकता- गोपियाँ व्यंग्य करने में प्रवीण हैं। वे उद्धव की भाग्यहीनता को भाग्यवान कहकर व्यंग्य करती हैं कि तुमसे बढ़कर और कौन भाग्यवान होगा जो कृष्ण के समीप रहकर उनके अनुराग से वंचित रहे। गोपियाँ कहती हैं कि, हे उद्धव! तुम उस कमल के पत्ते के समान हो जो नदी के जल में रहते हुए भी पानी की ऊपरी सतह पर ही रहता है। जल का प्रभाव कमल के पत्ते पर बिलकुल नहीं पड़ता। अर्थात श्री कृष्ण के इतने समीप होकर भी तुम उनके प्रेम से वंचित हो। तुमसे बड़ा भाग्यवान और कौन होगा। नीचे लिखी गयी इसी लाइन के माधयम से गोपियाँ उद्धव पर व्यंग करती है।


"पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह दागी।"


गोपियाँ उद्धव पर व्यंग करते हुए कहती हैं कि तुम उस तेल के मटके के समान हो जो जल में होने के बाद भी अपने ऊपर एक भी बूँद पानी नहीं रुकने देता। अर्थात उद्धव पर श्री कृष्ण का प्रेम प्रभाव नहीं छोड़ पाया।


सहृदयता- गोपियों की सहृदयता उनकी बातों में स्पष्ट झलकती है। वे कितनी भावुक हैं, इसका ज्ञान तब होता जब वे गद्गद होकर उद्धव से कहती हैं कि वे अपनी प्रेम-भावना को श्री कृष्ण के सामने प्रकट नहीं कर पाती बल्कि उसे मन में ही दबाये रखती हैं।


"मन की मन ही माँझ रही।


कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही।"


गोपियों की स्थिति ठीक उसी प्रेमिका की तरह है जो अपने प्रेमी को प्रेम तो करती है लेकिन उसका इजहार नहीं कर पाती


इस तरह उनका वाक्चातुर्य अनुपम था।


11
1